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 2020 के सिरे छूटने लगे हैं।
 संवेदना
 उन्हें चुप ना रहने दो!
 कमाल  गलियां हैं ये!
 बंधन का अर्थ समझा
कहाँ पहुँचना चाहते हैं?
प्लास्टिक की बोतल के ढक्कन जैसी आंखें
आवाज़ों, खुशबुओं और यादों को कैसे मिटा पायेगा कोई
ये खतरनाक कशमकश
एक अचूक औषधि!
क्यों हैं हम इतने बेसब्र?
आज बहने दिया
  इंसानी वजूद
जो ऋतु वसंत नही हो पाई, वह ऋतु होने से चूक गई
 मैं इतनी सार्वजनिक हो गई
  स्त्री
 शब्दों के अंबार
 चलिए, कुछ दिन भारत लौट चलें
कसक
हम सभी अपने आप में एक ईमारत हैं
जब भी आप माँ कहते हैं आप ईश्वर का नाम लेते हैं
 यह वक़्त की दस्तक है, पर दरवाजे बंद रखने हैं
प्रकृति का प्रकट भाव - बारिश
वहाँ जहाँ शब्द ना हों
गौरैया याद है आपको
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