स्त्री

 


पुरुष जब घर से दूर होता है तो फ़ोन करके पूछता है कि गेट का ताला लगा लिया ना। वहीं स्त्री पूछती है, खाना खाया कि नही, क्या क्या खाया ?

तनाव में उनके हाथों प्यार से बना खाना हमारे तनाव को थोड़ी देर के लिए ही सही दरकिनार तो कर ही देता है। वह एक मूक आश्वासन होता है कि मैं हूं ना। जब कभी हम घर से दूर रहें हों तो उन दिनों कि बेहतरीन यादों में से एक होगी, विदा करते वक़्त प्यार और मनुहार के साथ दी गयी मिठाइयाँ और नाश्ते। वह केवल नाश्ता नही होता, बल्कि प्यार, परवाह और प्रार्थना उसमे शामिल होते हैं।

छोटी छोटी बच्चियाँ भी जिस परवाह के साथ पिता और भाई के प्रति माँ जैसा व्यवहार करती हैं, उसे देखना, अनुभव करना, सुखद है


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