2020 के सिरे छूटने लगे हैं।

बस, एक दिन है दरम्यान।



उस सिरे पर 2021 की सुबह होगी। 

ऐसे में कुछ खुशकामनाएं करते हैं। इसके लिए पहले यह जानना ज़रूरी है की हम खुश कैसे होते हैं। और यह भी ज़रूरी है कि ख़ुशी आपकी अपनी हो, किसी और के हिसाब से ना हो। और एक बात, परेशानियां हमेशा रहेंगी, अब यह हम पर है कि हम आनंद लेते हैं या परेशानियों के पीछे हैरान-परेशान भागते रहते हैं। 

नजरिया बदल लिया जाए तो नज़ारा बदलते वक़्त नहीं लगेगा 

2020 के आखरी छोर पर खड़े होकर 2021 के लिए कुछ ऐसे ही जज़्बे की दरकार है। 

क्यों, कई साड़ी बातों पर गौर करना सीखा गया ना ये गुजरता साल। 

Covid हमारी तेज़ी से भागती जिंदगियों में एक ब्रेक की तरह आया जिसने हमसे कहा -

रुकिए, गौर कीजिये और फिर जुड़िये। 

Pause, reflect & reconnect 

नई संभावनाओं की तलाश :- 

फिजूल को गए भूल :- फिजूल खर्ची नहीं की. काम पैसों में शादी। काम खर्चे 

घर के काम छोटे नहीं :- हमारे घर के बर्तन मांजने वाली आंटी, गाडी साफ़ करने वाले भैया, और हमारे दुसरे छोटे- वाले लोग, हमारी जिंदगियों में कितनी अहमियत रखते हैं, यह पहली मर्तबा अहसास हुआ हमे। lockdown ने हमे सबक छोटे से छोटा कमा हमारे सभी बड़े कामों को अंजाम देने में कितनी बड़ी भूमिका निभाता है। ज़रा एक बार यद् कीजिये वो फ़रवरी -मार्च का महीना और वे सब्जी वाले भैया हमारे घर तक फल और सब्जियां पहुंचाई, वो सफाई कर्मचारी जो हमारी गलियों में  इक्कट्ठा हुआ कूड़ा रोजाना उठाते थे। हम बेहद अहसानमंद हैं उन सभी के।  

क्रिएटिविटी ने आँखें खोली :- नए किस्म के व्यंजन हो या DIY सौन्दर्य प्रसाधन, हर तरफ लोगों ने बहुत कुछ सीखा और बनाया। घर की छत या बालकनी में बागवानी, best out of waste जैसे कई रचनात्मक कार्य घर बैठे हुए। घर के सुस्त पड़े कोने अब गुलज़ार रहने लगे हैं।   

Social Distance लेकिन Emotional Connect :- इस से पहले कब इतना लम्बा वक़्त परिवार के लोगों के बीच गुजरा था? याद नहीं। लेकिन इस समय, जब लोग बीमार पद रहे थे और इसलिए एक दुसरे से एक निश्चित दूरी पर रहना था तब  भी हम भावनात्मक तौर पर एक दुसरे के नज़दीक आये। छोटे-बड़े काम साथ करते हुए परिवार के सदस्यों के बीच सामंजस्य और प्यार बढ़ा है। 

Less is more :- कम में ज़्यादा का सुख। हम  ज़िन्दगी में जुटाने पर विशेष ध्यान देते आए हैं। बिना यह सोंचे की क्या सच में हमे इतने कुछ की ज़रुरत है या कुछ कम में भी जीवन आसानी से जिया जा सकता है ? इस साल ने ये सारे सवाल हमारे सामने ला दिए ना। हमे यहसबक दिया की कम में कैसे खुश रहा जा सकता है।   

इंसानियत होने का भरोसा :- हाँ, मतलबी लोगों को पड़ता। वे बड़ी आसानी मिल जाते हैं। पर हमारा जीवन जितना  सार्थक हो पाया है उसमे इंसानियत का भरोसा शामिल है। इस भावना ने हमे आतंरिक तौर पर बहुत मजबूती दी है। 

जीना याद दिलाया :- कोरोना ने अमीर और गरीब में फर्क नहीं किया। चाहे कोई कितना ही साधन सम्पन्न क्यों ना हो, कुदरत के कहर से बच नहीं सकता। इसलिए महज पूँजी जुटते रहने में हम जीना भूल गए थे। बिना यह सोंचे की हम ये सब कर ही क्यों? वाक़ई में हमे इतना सब करने की ज़रुरत है ? कोविद ने हमे जीना फिर से याद दिलाया की क्या पता प्रभु ने कहाँ साँसों के डोर खींच लेनी है। इसलिए जिंदगी की मसरूफियत में जीना ज़रूर याद रखें। 

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