पहाड़ों वाली रातें


पहाड़ों वाली रातें कुछ अलग सी ही होती हैं। पहाड़ों के ऊँचे बदन पर बलखाती हुई नीचे रास्ता बनाती नदी जो अपनी आवाज़ से दिखती है। तारों की बारात से रोशन आसमान जैसे कोई त्यौहार मना रहा हो। उस वक़्त आँखों की सीमाओं तक फैले अंधेरे से बातें करती है वो रौशनी तारों की। और बातें करता है आपका मन उस अल्हड़ नदी की आवाज़ों से। प्राकृतिक राग का ये रियाज़ रात भर चलता है।

 

रात से सुबह तक का सफर अपने ही तरह का इंद्रधनुष बनाता है। कई नए आसमानी रंगों से मुलाकातें होती हैं इस सफर के दरमियान। ये एक ऐसा नशा है जिसकी एक कश भी अगर ले ली तो आप ये बार बार करना चाहते हैं।

 

जिस तरह सूरज के साथ ये सफर दिन में अच्छा लगता है उसी तरह पहाड़ों वाले चाँद के पास अपनी ही कहानियां होती हैं दिखाने के लिए, सुनाने के लिए। सबसे अच्छी बात ये की आप यहाँ अकेला महसूस कर ही नहीं सकते। इतना कुछ जो आपके साथ होता है। आप अपने साथ होते हैं। ऐसी जगहों पे खुद से करीबी महसूस कर सकते हैं। हाँ अगर किसी ख़ास का साथ हो तो क्या कहने। बातें तो आप करते ही हैं या अंदर खुद से या बाहर 'उनसे'। ख़ामोश सर्द हवाएं और कई बार कुछ बिल्कुल अनजान लोगों का साथ भी बहुत भाता है।

 

जज्बातों और कल्पनाओं के कई जायके इकट्ठा कर लेते हैं हम। उनकी पोटली बांधकर साथ लिए चलते हैं फिर अगली सुबह नीचे।


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