उस ओर, जहाँ अच्छा लगता है



करते हैं जिंदगी का 'सफर' 

ज़रा देखिये 'उनको' थोड़ा दूर से। भाग रहे हैं, सभी बस भाग रहे हैं। ख्वाइशें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। पल दो पल चैन से बैठना हम भूल चुके हैं। भूल ही गए हैं की इंसान के रूप में ये जीवन हमे ही मिला है। जिसके लिए हमे प्रभु का धन्यवाद् देना चाहिए। ये सब इसलिए क्यूंकि हम बहुत कुछ पाना चाहते हैं। पर खुद को खोकर पाया तो क्या पाया।  थोड़ा ठहरो, रुकने की ज़रुरत को समझो और खुद से बात करो।  

याद करिये उस नन्हे से बच्चे को जो रसोई के बर्तन, बोतल का ढक्कन, गाड़ी की चाबी या मिटटी ही, किसी से भी खेलने लगता है। ओर अगर कोई टूटा खिलौना भी हो तो वह उसमे से भी खेलने का सामन ढूंढ ही लेता है। क्या लगता है? वह ऐसा कैसे कर लेता है? क्यूंकि वो जिंदगी के झूले में मस्त हिलौरें ले रहा है। भाई बचपन तो खुशियों की बयार है। अपर जैसे ही हम उम्र के साथ बड़े होने लगते हैं वैसे ही बचपन को छोड़ देते हैं और इसके साथ छूट जाता है हमारा खुश रहने का ढंग। बचपन की तरह आनंदित रहना हम भूलने लगते हैं। और बड़े होते होते हम जीवन से कई बड़ी उमीदें लगते रहते हैं। कुछ मिला तो खुश और अगर ना मिला तो नकारात्मक भाव से घिर जाते हैं। असंतोष हमारे अंदर आने लगता है। 

एक बार झांककर तो देखिये

परेशानियां, चुनौतियां तो कभी काम ना होनी। ये तो जब तक जीवन रहेगा तब तक रहेंगी। आपने महसूस किया ही होगा। चाहे कोई सी भी उपलब्धि और ऐसी कितनी ही उपलब्धियां क्यों ना मिल जाएं। चुनौतियां साँसों के साथ चलने वाली क्रिया है। दो ही तरीक हैं। या तो इन्हे धोते चलें या फिर मुकाबला करते हुए। अब उस मुकाबले में हारना या जीतना ये एक अलग बात है, इसे खुश रहने से मत जोड़िये। फायदे में रहेंगे। 

लौटें जड़ों की ओर

अगर हम अपनी संस्कृति में जियेंगे या  यूँ कहूं की हम भारतीय संस्कृति में जियेंगे तो रास्ते बेहतर ओर आसान लगेंगे। ओर मज़े की बात यह है की यह पूरी तरह वैज्ञानिक है। जैसे ललाट के बीच में चन्दन का टीका लगाना।  तासीर ठंडी होने से ये हमारे विचार ओर व्यवहार में ठंडक ओर संतोष लाता है। बाहर चप्पल खोलकर भीतर जाना। इस से कोई भी गलत ऊर्जा ओर गन्दगी घर के अंदर प्रवेश नहीं करती। 

फिर ओर चाहिए भी क्या

कभी कभी कुछ दूसरों के लिए भी किया जाए। यकीन मानिये, इस से ख़ुशी ही मिलती है। इसका मतलब ये नहीं की हम पूरा जीवन ही किसी को दे दें। ऐसी सेवा तो विरले ही कर पाते हैं। पर हम थोड़ा कुछ भी करते रहें तो भी बहुत कुछ बदलाव ला सकेंगे किसी की भी जीवन में। आजकल तो कोई अगर परेशान है, हम उसे समय देकर उसकी बात सुन लें। ये बड़ी सेवा है आज की तरीक में। और अगर किसी का सही मार्दर्शन कर दिया तो कहने ही क्या। अगर  कोई गुस्से में है तो उसका भाव बाहर लेन में मदद करें। हम परेशानियों में इतने खो जाते हैं की मन की आवाज़ को सुनने का समय है ही नहीं। समय दें, आज के समय में ये बड़ी बात है। 


तो क्या करें?

नाकारात्मकता घेर लें तो निष्पक्ष हो जाएं, इसका मतलब है, ना नकारात्मक और ना सकारात्मक। फिर जब इसकी आदत हो जाये तो निष्पक्ष से साकारात्मक विचारों की ओर खुद को ले जाएं। मुश्किल है पर नामुमकिन नहीं। ओर ज़रूरी भी है। 


करके देखिये ऐसा, आनंद ही आनंद अनुभव करेंगे। 

 

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