द लास्ट लीफ | O Henry

द लास्ट लीफ

What is the moral of the story the last leaf?


चारों तरफ बर्फ जैम रही थी। लोग जम रहे थे। जिंदगी थम रही थी।  वाशिंगटन के पास कलाकारों के गांव ग्रीनविच में नीमोनिआ महामारी विकराल हो फ़ैल रही थी।  ऐसे में जौन्सी  ठण्ड से जकड गई।  वह अपनी सहेली सू के साथ रहती थी। निमोनिया और नाउम्मीदगी। डॉक्टर ने कहा - दस में से कोई एक बच पता है ऐसे में। इच्छाशक्ति ही नहीं है। खिड़की के बहार वह उस बेल को देखती जा रहे थी।  फिर उसने कहा - पत्तियां झाड़ रही हैं। ग्यारह .... दस .... नौ .... आठ ....बंजर चौक।  सदाबहार की लता।  टूटी ईंटों से सटी हुई।  तीन दिन पहले सौ से ज़्यादा पत्तियाँ थी। अब छह ही बची हैं।  आखिरी पत्ता गिरते ही मैं मर जाउंगी। "पागल , पत्तियों से तुम्हारी बिमारी का क्या सम्बन्ध?" नहीं।  जौन्सी तो नहीं ही मानी।  वह इंतज़ार करने लगी की आख्रिरी पत्ता गिरे और "फिर मैं इस संसार से जाऊं।" सू डांटते हुए बूढ़े चित्रकार पीटर से मिलने चली गयी।  


असफल पीटर की सारी ज़िन्दगी ही 'मास्टरपीस' बनाने की बात में चली गयी थी। वह सू की बात सुनकर भड़क गया। पत्ते के झड़ने से मरने वाले का सम्बन्ध जोड़ने वाली मूरखता करने वालों का क्या? बर्फीली बारिश थम ही नहीं रही थी।  तूफ़ान आया।  पर्दा गिरा दिया सू ने।  लेकिन "पर्दा उठा दो।।  " की जिद कर, जौन्सी बहार देखने को विचलित हो रही थी।  सू भयभीत थी। क्यूंकि तूफ़ान में वह पत्ता कहाँ बचना था। किन्तु आखों में भय की जगह चमक आयी।  पत्ता तूफ़ान झेल गया। ऐसा तीन रातों तक हुआ।  आखरी पत्ता ना गिरने से जौन्सी में जैसे नए प्राणों का संचार होगया। डॉक्टर भौचक रह गया।  इच्छाशक्ति।  वह नब्ज और दिल की धड़कन देखने के बाद बोला - बस अब कोई खतरा नहीं।  आप खाने - पीने का ध्यान रखिये।  देखिये, बूढा पीटर निमोनिये का शिकार हो गया। आज गुजर गया, अफ़सोस! सन्नाटा।  धक् रह गयी जौन्सी।  बाहर, बेल पर आखरी पत्ता, फिर भी, मानो मुस्कुरा रहा था। सू रोक न सकीय खुद को।  जौन्सी से बोली - निमोनिया से नहीं मरा पीटर। तूफ़ान में उस रात आखरी पत्ता गिरने से पहले वह बेल तक पहुंचा , सीढ़ी लगायी और रात भर तूफ़ान में बनाता रहा पत्ते की पेंटिंग।  ताकि तुम्हारी आस ना टूटे। तुम जी सको।  पत्ता बनाते ही लड़खड़ा कर गिर पड़ा और मर गया।  मास्टरपीस। 


ओ'हेनरी ने यह कालजयी कृति 'द लास्ट लीफ ' कोई सौ साल पहले लिखी थ। पर इसमें ऐसी जिंदगी भरी है की हज़ार सालों तक भी नहीं झड़ेगी।  


हम जौन्सी हैं।  आस लगाए। पर डरे हुए।  अपने ही किसी कमजोर हिस्से से। अपनी इच्छाशक्ति को किसी से जोड़कर देखने वाले।  या फिर हम सू हैं।  प्यार से भरपूर।  पर फिर डरे हुए । अपने लिए नहीं , अपने किसी प्रिये के लिए।  बनना हमे पीटर है।  कहने को विफल।  विफलता से डरा हुआ । दिखने में कमजोर । पर वास्तव में संसार में सबसे निडर। मानवीय कल्पनाओं से कहीं आगे । किसी और के लिए कुछ भी कर गुजरने का माद्दा। 



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