क्यूंकि ये खुशियों का पता नहीं ढूंढते फिरते

ये बस पहचान लेते हैं उसे 

poor but happy children of india


दो सड़कों के बीच डिवाइडर के चौड़े किए जाने या शायद तिराहा बनाने का काम चल रहा था। ज़मीन खुदी हुई थी और उसको बांसों को बांधकर रेखांकित कर दिया गया था। इसके बीच पड़ी मिटटी के ढेर पर एक बच्चा,यही कुछ चार-पांच साल का, मज़े से लेटा हुआ था। हांथों का सिराहना बनाए, भरी दुपहरी में अपनी दोनों तरफ दौड़ती गाड़ियों के शोर और आप-धापी से परे, मुस्कुराता, कुछ गुनगुनाता शायद। वहीं पास में ही, उसके माता-पिता, भाई या कोई रिश्तेदार ईंटें जमा रहे थे। 

poor yet happy child playing


मुड़े पायचों वाली पतलून और टी-शर्ट पहने उस बच्चे की भंगिमाएं बता रही थीं कि उसका बालमन दौड़ती-भागती दुनियां के केंद्र में चैन पा रहा है, विपन्नता में उसने सुख ढूंढ लिया है, गरीबी ने उसे हीरो वाली लापरवाही दे दी है। जिस तिराहे के बनने से पहले उसकी किसी उपयोगिता के बारे में हम सोंच भी नहीं सकते, उसके निर्माण के दौरान ही उसने पूरा सुख पा लिया है। जहां भी परिवार काम करे, वहीं इन बच्चों का घर होता है, बिना छत का। 

poor children playing in mud


भले वहां मिटटी, गिट्टी, पत्थर, ट्रैफिक का रेला हो। यही उनकी उपवन है, कंटीला, चुभन भरा। क्या जाने कितनी देर वो वहां उस मिट्टी के ढेर पर पड़ा रहा हो, क्या सोंचकर मुस्कुरा रहा हो, लेकिन वहीं पास खेलते अपने जैसे दुसरे बच्चों से कुछ अलग ज़रूर था। उसकी एक झलक सब्र, सुकून और सुख के बहुत बड़े सबक सीखा गई। उसके चेहरे का इत्मीनान, बड़े-से बड़े और भरपूर सुख से नवाज़े गए इंसान के लिए ख्वाब भी है और हैरानी का सबब भी।     

happy children despite of being poor


क्या लाए हैं, जो इतराएं ....... वाले भाव का यूं सामना करना स्तब्ध कर जाता है।   

चिंता से परे, दुखों से दूर 


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