खुशियों की उम्र छोटी और मुश्किलों की बड़ी क्यों लगती है?

शायद अहसास का फर्क है!

introspecting happiness and sadness in life


ये राहों का मिज़ाज़ बराबर बंटा हुआ नहीं रहता 

सबकी ज़िन्दगी में समय का पहिया कुछ यूं घूमता है की राहें कभी मखमली लगती हैं और कभी पथरीली। रास्ते मुश्किल हों तो सफर में हिचकोले महसूस होते हैं, पहिया उचकता- कुदकता जो चलता है। और हमे वक़्त से शिकायतें हो जाती हैं। जो हवा के मानिंद सहज बहता चले तो तो किसी को अहसास ही नहीं रहता। शायद ये अहसासों का ही तो फर्क है! हमारी जिंदगी की राहों का मिज़ाज़ बराबर बंटा हुआ नही है। कभी सुकून कदम रस्ते, कभी तेज़ कदम राहें। 

जब वक़्त की ज़मीन पथरा जाये और अनगिनत मोड़ आने लगें, तो सांसें तेज़ हो ,जाती हैं। सही बात है, हिचकोलों पे हम सहज सांसें नही ले सकते। मुश्किल समय में धीरज रखना इतना आसान होता तो 'मुश्किल' शब्द ही क्यों बना होता? ऐसे में एक विजेताओं का मंत्र है उसे दोहराने से ऊर्जा आएगी - 

"जो मैदान में डटे रहते हैं, उन्हें आप नही हरा सकते।"


राह पे चलते रहेंगे, बने रहेंगे तो सुकून कदम भी हिस्से में आएंगे। समय भी आखिर कब तक एक ही मिज़ाज़ बनाये रखेगा। कभी तो वो भी ऊबेगा! 
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