सहेलियों, एक बात सुनोगी .....

 


ऊर्जा का संतुलन


हम 'शिक्षित' तो हो गए पर आज की इस 'शिक्षा' से क्या कुछ हमने पाने की जगह खो दिया। क्या नही लगता हमने खुद को प्रकृति से ही दूर कर लिया है? वह प्रकृति जो हमारे होने का कारण है, जो हमे लय देती है। थे तो हम जन्म से पहले भी, अनश्वर (कभी ना मरने वाली) आत्मा के स्वरुप में और मरने के बाद भी रहेंगे। तो ये जो बीच का समय है जिसमे हमने शरीर का कपडा पहना है, इसके कुछ मायने हैं। हम यहां कुछ करने आये हैं,  कुछ भोगने आये हैं। 


सहेलियों, एक बात सुनोगी .....

हम में से कुछ तो बेहद सफल हैं, कुछ संघर्षरत, कुछ तनाव में। कुछ ऐसी बातें में साझा करना चाहती हूं जो कहीं न कहीं आपने भी महसूस की होंगी अपनी ज़िन्दगी में। मैं ये बात पहले ही साफ़ कर दूं कि ये बातें मैं सभी महिलाओं के लिए नही कह रही। ये बातें उनसे कर रही हूं जो कुछ अधूरा, अटपटा, अनबना, बेमानी सा महसूस कर रही हैं। चलिए अब शुरू करती हूं, 


हमने करियर को ज़्यादा महत्व देना शुरू कर दिया है, विवाह को नहीं। और इस मत को और बढ़ावा मिला 'लिव-इन-रिलेशन्स' से, इनके तो बहुत जगहों पे कानून भी पास होगये हैं। समलैंगिक (same sex) विवाह के भी क़ानून बन गए हैं। जिस तेज़ी के साथ ये आंदोलन आगे बढे, इसका प्रभाव हम पर गहरा पड़ा। हमारे मन में समानता का वातावरण नये रूप में उभरकर प्रकट हुआ। करियर के प्रति अति उत्सुकता, आज़ादी, ना शादी, ना बच्चे। हम में माँ बनने का मन भी कम हो गया है। इस प्रकार के और भी कई बदलाव आये हैं। क्या हमने हमारे और पुरुषों के बीच जो खाई थी उसको कम करने कि ज़द्दोज़हद में उसे बढ़ा तो नही लिया। 

नयी सदी की नयी प्रकृति ने जन्म ले लिया है। higher education, best infrastructure आदि से जो 'शिक्षाएँ'  हमने ली उस से 'प्रगति' के साथ जो मतभेद और तनाव सामने आएं हैं उन्हें भी नकार नही सकते। और यह बदलाव सिर्फ हम भारतीय महिलायें ही नही बल्कि पूरी दुनियां कि महिलायें अनुभव कर रही हैं। हमने अपने शरीर को कई सारे आदेश ज़ारी कर दिए हैं। हमारे शरीर के काम करने के ढंग में कई सारे बड़े बदलाव आ गए हैं। रहन-सहन, खान-पीना बदला सो बदला, बच्चे को जन्म देने का प्राकृतिक तरीका भी हमने अपने हिसाब से तय कर लिया है।

हमारी मासिक क्रिया चन्द्रमा के (28 दिन के) महीने से नियंत्रित होती है। हमने अपने शरीर को अलग अलग तरीके से मासिक क्रिया को कई बार रोक लेते हैं, पर ऐसा करने से हमारे चन्द्रमा से जो सामान्य विच्छेद हुए, इस हानि का क्या प्रभाव पड़ा? ये कौन सा डॉक्टर समझा पाएगा? इसी तरह करियर की उत्सुकता ने शादी की उम्र भी ताल दी। आज हम 11-12  की उम्र में रजस्वला (menstration) होती हैं। शादी की उम्र अब 28-30 के पार जा पहुंची है। पर इस दौरान हमारे कई संतुलन बिगड़ रहे हैं, जिस से हम बिलकुल अनजान हैं। ज़ाहिर है फिर माँ बनने की संभावनाएं भी बहुत अच्छी नहीं रहती। हाँ, मेडिकल साइंस मदद कर देता है, पर चीज़ें natural नहीं रहती। 

समझिये इस बात को, की यह महँगी ही नहीं बल्कि कठोर जीवन यात्रा बन जाती है, हम में से कइयों के लिए बनने भी लगी है। मानती हैं ना, हम एक गंभीर मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। इसकी अभिव्यक्ति हम शायद खुद भी सही से न कर सकें। 

जो अगर यहाँ से बच भी गई तो करियर का मोह पीछा नहीं छोड़ता। माँ बनने का मन शायद बहुत कम रह गया है, या कुछ में तो बच्चा भी नहीं ये मन। protection pills बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं, कुछ गोलियां तो ऐसी हैं जिनसे महीनों काम चल जाता है। अब जरा धयान देना, जिन जगहों पर इस तरह की सारी तकनीकें हैं और advanced व्यवस्थाएं हैं जिन की मदद से हम बच्चा जन्म देना आदि चीज़ें संभव करते आ रहे हैं उन जगहों पर महिलाओं में स्तन कैंसर और uterus निकालने के आंकड़े चौकाने वाले हैं। और जहाँ पे ये 'विकास कार्य' नहीं पहुंचा है वहां भी नज़र दाल लें। 

हमने जो ये प्रकृति के साथ होड़ लगनी शुरू कर दी है, हम प्रगतिशीलता के नए से नए अध्याय लिखते जाने में बहुत व्यस्त हो गए हैं, हम क्या इतने नासमझ हो गए हैं या समझना ही नहीं छाते की हम प्रकृति को कतई नहीं हरा पाएंगे बल्कि इसकी मार भी हम झेल रहे हैं। फिर समझिये, हमे ज़रुरत है प्रकृति की व्यवस्था, उसके नियम-कायदे और परिणाम समझने की। हमे यह समझना चाहिए की हमारी जीवन हमारे नियंत्रण में कम और प्रकृति के नियंत्रण में ज़्यादा है। पुरुष और हम स्त्रियों की प्रकृति और भूमिकाएं अलग हैं। यहाँ competition की ज़रुरत नहीं है। 

समानता अवसर की, सम्मान की होनी चाहिए। हम दोनों ही प्रकृति से जुड़े हैं, स्वतंत्र नहीं हैं। प्रकृति ने पूर्व को गरम और पश्चिम को ठंडा देश बनाया है। वैसे ही हमारी भूमिकाएं भी लाग हैं पुरुषों से। एक दुसरे की नक़ल करके या उसकी भूमिका उस से बेहतर तरीके से करने से हम हमारे ही विकास की गति धीमी कर देते हैं।     

तो चलिए, इस यांत्रिक सभ्यता से दबाव में रोबोट ना बने। वरना पूरी उम्र कष्ट भोगने को बाध्य होना पड़ेगा।       

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