माँ, तुम सजती हो तो दमकता है उत्सव


कहिये, सच है की नहीं? उत्सव में उमंग तब आता है जब माँ सज-सवंरकर पूजा करती है। 'अन्नपूर्णा' की रसोई में जब पकवान महकते है तब लगता है आज उत्सव है। घर के सारे कामों से निवृत होकर जब 'गृहलक्ष्मी' जब रेशमी साड़ी में लिपटकर, आभूषण पहनती है और माथे पर लाल बिंदिया लगाकर पूरे श्रृंगार के साथ मेहमानों का स्वागत करती है तब लगता है आज पर्व है। उसके पैरों में लगा लाल अलता और हाथों में लगी मेंहदी उत्सवों में मानों गीत गाती है। उसके पायल की धीमी झंकार खुशियों को डेरे से घर में बुलाती है। बिना थके या कोई शिकायत कीये जब वो पूरी उत्सुकता से घर की चौखट पे रंगोली बनाती है तो लगता है उत्सव है। 


इसलिए

हर महिला इसे एक अरज है, त्योहारों पर अच्छे से सजें - संवरें। घर में आपकी चहल - कदमी से ही उत्सवों में रंग है, उत्सवों का आनंद है।     

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