तुम भूल ना जाओ उनको इसलिए सुनो ये कहानी | Kargil

थे धन्य जवान वो अपने, थी धन्य वो उनकी जवानी

जो खून गिरा पर्वत पर, वो खून था हिन्दुस्तानी


ऐ मेरे वतन के लोगों, तुम खूब लगाओ नारा - जय हिंद, जय हिंद की सेना। कारगिल विजय दिवस - ये शुभ दिन है, हम सब का, आज फिर से लहरा लो तिरंगा लाडला। तुम भूल ना जाओ उनको, इसलिए सुनो ये कहानी 60 दिनों की, कारगिल की -





कुछ याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर ना आये


आइये, आप को लिए चलते हैं साल 1990 में जब से 'नापाक' पाकिस्‍तान ने अपनी आतंकवादी गतिविधियों से बाज आना बंद ही कर दिया था, पर भारत ने भी हर बार उसे उसकी औकात दिखाई। ऐसे में पाकिस्‍तान ने भारत में घुसपैठ की योजना बनाई। बात सर्दियों के मौसम की है जब सैनिक ऊंची चोटियों पर अपनी पोस्ट छोड़कर निचले इलाकों में आ जाते थे। और ऐसा दोनों, पाकिस्तान और भारतीय सेनाएं ऐसा करती थीं। लेकिन 1998 की सर्दियों में कहानी अलग घटी। भारतीय सेनाएं तो वापस लौटीं, पर पाकिस्तानी सेना के इरादे इस बार नेक नहीं थे। पाकिस्तानी सेना ने अपनी पोस्ट नहीं छोड़ी और कायरों की तरह चुपके से एलओसी पार करके लद्दाख में स्थित करगिल पर गलत तरीके से कब्‍जा कर लिया। 



थी खून से लथपथ काया, फिर भी दस दस को एक ने मारा


हमारे वीर भारतीय सेना को इस घुसपैठ की जानकारी चरवाहों से मिली। चरवाहों ने पाकिस्तानी सैनिकों और घुसपैठियों को वहां देख लिया था। फिर आगाज़ हुआ 'ऑपरेशन विजय' का जिसके तहत भारतीय सेना ने घुसपैठियों से अपनी जमीन को खाली कराने का प्रण लिया। भारतीय वायु सेना ने भारतीय सेना कासाथ देने के लिए 'ऑपरेशन सफेद सागर' के तहत 26 मई को हवाई हमला किया। और 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेनाओं ने अपने दम पर घोषित किया वो शुभ दिन "कारगिल विजय दिवस" जब उसने करगिल में पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा कब्जा कर ली गई सभी सैन्य चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया। 




संगीन पे धर कर माथा, सो गये अमर बलिदानी


करीब 60 दिनों तक चले इस युद्ध में करीब दो लाख सैनिकों ने अपना राष्ट्र धर्म निभाते हुए अपना शौर्य और अदम्य साहस दिखाया। सैकड़ों की तदाद में घुसपैठिए बर्फ की आड़ में बंकर बना कर छिपे थे। घनघोर विनाश का सपना बने वे अक्ल के दुश्मन ने सोंचा नहीं होगा की उनका भारतीय सेना कैसा हश्र करेगी। भारत और पकिस्तान के बीच हुए इस युद्ध में भारी मात्रा में रॉकेट और बमों का प्रयोग किया गया था। और करीब दो लाख पचास हजार गोले, बम और रॉकेट दागे गए थे। करीब 5 हजार तोपखाने के गोले, मोर्टार बम और रॉकेट 300 बंदूकें, मोर्टार और एमबीआरएल से हर दिन दागे जाते थे। और जिस दिन टाइगर हिल को वापस लाया गया था उस दिन 9 हजार गोले दागे गए थे। 




क्या लोग थे वो दीवाने, क्या लोग थे वो अभिमानी


लोगों का ऐसा मानना है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह अकेला युद्ध था जिसमें दुश्मन सेना पर इतनी बड़ी संख्या में बमबारी कर के उन्हें बुरी तरह खदेड़ा था। इस लड़ाई में 527 भारतीय जवान शहीद हुए थे और करीब 800 पाकिस्तानी सैनियों को मार दिया गया था। 26 जुलाई 1999 को भारत की जीत के साथ इस युद्ध का समापन हुआ था और भारत के वीर सपूतों ने तमाम मुश्किलों को पार करते हुए दुर्गम पहाड़‍ियों पर तिरंगा फहराया था। 




जब अंत समय आया तो, कह गये के अब मरते हैं, खुश रहना देश के प्यारों, अब हम तो सफ़र करते हैं... 

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