महाशिवरात्रि 2023 - अनुभव | भाग 4






यूँ ज़िंदगी गति का नाम है। पर ऐसे ठहराव दृश्य दिखाते हैं जिंदगी के। गाना पूरा हुआ और गोदावरी में नए बने साथियों से मेरी आंखें मिलीं। और कब 6:00 बज गए पता नहीं चला - वो समय जिसका मेरे साथ कई लोग कई सालों से इंतजार कर रहे थे। फॉर्मल अनाउंसमेंट हुई और प्रोग्राम शुरू हुआ। सद्गुरु की आवाज अभी सुनने नहीं मिली थी, क्योंकि मुख्य अतिथि के रूप में भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी का स्वागत कर रहे थे।




आपके कुछ ही मीटर दूरी में आपकी राष्ट्रपति और बेहद प्रिय सद्गुरु वही सांस ले रहे हैं, जो आप ले रहे हैं। ऐसा अनुभव जीवन में कभी कभी ही होता है। श्रीमती दोपदी मुर्मू जी को सूर्यकुंड, लिंग भैरवी के दर्शन और ध्यान लिंगा में पूजन कराने के बाद सद्गुरु उन्हें लेकर आदियोगी के सामने हम सब चाहने वालों के समक्ष आ ही गए। क्योंकि मैं थोड़ा सा दूर थी इसलिए सामने से वो नहीं देख पा रही थी। पर जैसा ही उन्होंने कहा- वेलकम टू महा शिवरात्रि 2023 तब पृथ्वी का वो टुकड़ा, वेल्लिंगिरी पर्वतमाला का वो सारा प्रांगण एक साथ गूंज पड़ा। अपने गुरु को अपने समीप आने की तड़पती इच्छा को जैसे पानी की घूंट मिली हो।




जैसे सूरज की गर्मी से तपते हुए मन को मिल गई थी अपने सद्गुरु की पहली झलक और पहली आवाज। कानों ने जैसे अपना वक्त लिया ये पचा पाने में की वाकई इतनी मुद्दों पर सद्गुरु की आवाज सीधे उनके मुख से मेरे कानों में आई है। हाँ, लाउडस्पीकर्स की मदद से। आप अपने पसंदीदा गुरु के लिए पास कुछ ही दूरी पर है। ये भाव शब्दों के जरिए बता पाना बहुत मुश्किल है। इसलिए यह काम शरीर में अपने ही तरह से किया जब तुरंत रोंगटे खड़े हो गए। आंखें छलछला गईं।




पहले जब घर से प्रसारण देखा करती थी तो बार बार इंटरनेट नहीं होता था। टीवी पर कार्यक्रम देरी से शुरू होता था। पहले तो ये भी नहीं पता होता था कि किस चैनल पर आएगा। अगर पर्याप्त और सही स्पीड से इंटरनेट न हो तो देखने का मज़ा आधा हो जाता। फिर भी मैं देखती थी कैसे न कैसे। मुझे इस तरह देखता हुआ देख मेरी माँ पिघल जाती और प्रार्थना करती कि उरु को साक्षात् देखने का मौका जल्दी मिले और इसी का असर था MSR 2023 का टिकट जिसकी वजह से मेरे सामने मेरे सद्गुरु थे, महा शिवरात्रि का ये झूमता हुआ खूबसूरत समां था। यू लगा था कि जैसे कुछ घंटों के लिए एक अलग ही दुनिया में आ गई।




सद्गुरु की दुनिया में ईशा के प्रांगण में, महाशिवरात्री की बेला में लाखों दीवानों के साथ दीवानगी की हर हद तक झूमने गाने सारी रात। 2 घंटे की डीजे नाइट में मस्ती खोरों की मस्ती सुस्ती में बदल जाती है तो 12 घंटे की मस्ती खेल नहीं है यार। ये मत वाले ही कर सकते हैं।और ऊरू उनमें से ही एक है। बहुत देर तक बार बार खुद को यकीन दिलाना पड़ रहा था कि झूमना गाना, ये सारा मदमस्त माहौल ये सब मेरे सामने ही हो रहा है। आज की रात में प्रसारण नहीं, साक्षात देख रही हूँ- स्वयं साक्षी हूं। 
Reactions

Post a Comment

0 Comments