पूरी रात भर में सद्गुरु करीब तीन से चार बार हमसे मिलने, हमें प्यार करने, हमारे उत्साह को बढ़ाने, हमारा बार बार स्वागत करने, हमारे बीच रैंप पर आए। दिव्यदर्शन नाम से एक लेज़र शो दिखाया गया आदियोगी पर ही। जिसे प्रस्तुत करने के लिए पूरी लाइट्स बंद कर दी गई थी। तब जब सभी ने मोबाइल निकाले तो लगा तारे जमीं पर। 10-12 मिनट के इस शो में मुझे सबसे ज्यादा जो पसंद आता है, वह है शिव पर अर्धनारीशवर वाला हिस्सा, जिसे शो को पूरा करते वक्त दिखाया जाता है। शिव-पार्वती की यह तस्वीर बड़ी मोहक होती। आपस में दोनों प्रभु इतने खूबसूरत लगते हैं। हर दम्पत्ति को भी एक दूसरे के साथ ऐसा महसूस हो तो दाम्पत्य सफल है। जिंदगी तभी पूरी है जब शिव-शक्ति साथ में चलते हो।
ढोल-नगाड़े और अन्य वाद्ययंत्रों की ऐसी विहंगम प्रस्तुति जैसा शायद किसी विश्व स्तरीय अवार्ड फंक्शन्स की ऑडियंस ने भी शायद ही अनुभव किया हो। कम से कम 12 घंटों की लगातार प्रस्तुति तो बिल्कुल नहीं की होगी। यह सद्गुरु के अलावा किसी के बस की बात भी नहीं है। यूँ ही नहीं बड़ी-बड़ी सेलिब्रिटीज अपने व्यस्त कार्यक्रम मे से समय निकाल के यहाँ 50,000 रुपए के टिकट खरीदकर हर बार आना चाहते हैं। बाकी अवॉर्ड फंक्शन्स में तो वे आने के पैसे लेते हैं और ईशा की शिवरात्रि में ये पैमाने बदल जाते हैं।
अगर आपका भगवान मे विश्वास ना भी हो तब भी। यहाँ आकर, यहाँ की ऊर्जा का आनंद लेने ऐसे कई लोग आये थे। कोई जबरदस्ती नहीं है कि आप आस्तिक हों। अगर यहाँ का रस लेने के बाद आपकी आस्था मान जाए तो ऐसे मे किसी दोषी ठहराएंगे?
हैंगओवर शब्द का क्या होता है? इसका पूरा-पूरा मतलब मुझे अब समझ में आ रहा था। MSR 2023 को पूरा हुए आज पांचवा दिन है और मैं अभी तक वहीं हूँ। उसी फिजा मैं, उसी मस्ती में, उसी नशे में। जो थोड़ा बहुत होश आता है, तो बहुत याद आने लगती है, तो लगता है अब तो महा शिवरात्रि पूरे 1 साल बाद आएगी। अभी पूरा 1 साल पड़ा है।
वैसे इतने सारे चेहरों को एक ही जैसे मुस्कुराते पहली बार ही देखा था। और भी कई चीजें पहली बार ही देखी थी जैसे उम्र के छठे दशक में महिला का धीरे-धीरे मीठी-सी शोखी से मटकना, 6 साल के बच्चे का रात 2:00 बजे शिवा के भजनों पर झूमना, प्रेम रस में डूबे युगल का 3:00 बजे की रात की ठंडाई में गरबा करना और तो और 12:00 बजे तक नए दीवानों का महा शिवरात्रि 2023 में जुड़ना। देर रात तक नए चेहरे अपने लिए कुर्सी धूमते हुए दिखे। मुझे यह भी बताना चाहिए कि वे बहुत खूबसूरती से तैयार थे। बड़े ही प्यारे लग रहे थे मुझे उस वक्त वे लोग जिन्होंने यह भी नहीं सोचा की अब तो काफी देर हो गई, आधा कार्यक्रम भी निकल गया, अब क्या सज के जाना?
जब लाखों की संख्या में शंभू-शंभू, शिव-शंभू गूंजता है तो उन तरंगों को सुनने के लिए मानो सारा शरीर कान बन जाता है। क्योंकि मेडिटेशन करते वक्त मन अक्सर खयालों में भरा रहता है। पर ईशा में उस वक्त ध्यान लगाते समय अपने प्रिय शिव के अलावा दूजा कुछ भी कहीं नहीं था। ना भीतर, नया लबों पे। वैसे भी शिव के सिवाय दुनिया में और रखा क्या है?
12 घंटे लगातार क्या शिव के अनेकों अनेक नाम अलग अलग भाषाओं में भज् सकते हैं? ईशा के प्रांगण में 12 घंटों में यह सहज ही हो जाता है। पहली बार किसी चीज़ का अभिषेक होते देखा। हमारे ठीक सामने सद्गुरु लाखों रुद्राक्षों का अभिषेक कर रहे थे, जो दुनिया में अनंत घरों में जाने के लिए तैयार थे। मज़े की बात यह है कि कोई भी इसे अपने लिए ईशा से मंगवा सकता है और वो भी बिल्कुल मुफ्त। प्रसाद के रूप में वहाँ मौजूद हम सभी को एक पैकेट मिला जिसमें एक रुद्राक्ष, विभूति का एक छोटा पैकेट, धागा और आदियोगी की मोहक तस्वीर थी।
प्रसाद ने केवल रुद्राक्ष ही नहीं था, एक पूरी साउथ इंडियन थाली थी जिसमें सफेद पोंगल, सांभर चावल और सब्जी होती है। यह बड़ा ही सात्विक होता है और सुपाच्य भी। यह वहाँ आने वाले हर व्यक्ति के लिए है इसलिए इसे महा अन्नदानम भी कहते हैं। क्योंकि यह बहुत बड़े स्तर पर प्रसाद की व्यवस्था की जाती है और इस तरह के बहुत बड़े काम सहयोग से संपन्न होते हैं इसलिए लिए दान का अपना महत्व है और यह करना बहुत सराहनीय है। संस्था को इससे काफी मदद हो जाती है। यह पप्रसादम शाम सात से रात 11:00 बजे तक दिया जाता है। मैं नहीं खा पाई क्योंकि मेरा व्रत था। आप रस लेकर बताइयेगा, कैसा लगा?
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