क्या इसलिए आपको भी जिंदगी से शिकायत है?

क्या थका हुआ, हारा हुआ सा महसूस होता है?

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जब तक हम उसी ढर्रे पे चलते रहेंगे जो बेवजह की व्यस्तता से भरा हुआ है तो फिर थकान ही महसूस होगी ना। कुछ पाने की जगह अगर थकावट हासिल होगी तो ज़िंदगी से नाराज़गी लाज़मी है। 

कुछ भी (मन का) करने के लिए समय ही नहीं है - ये सबकी समस्या है। पूरा दिन कहां और कैसे बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। और इसी तरह दिन हफ़्तों में हफ्ते महीनों में महीने का ढेर सालों में और साल वो ज़िंदगी में बीत जाते हैं।पर समय नहीं मिलता। फिर जब उम्र के उस पड़ाव में होते हैं जब जिंदगी की डायरी के पन्ने पलटने बैठते हैं तो पता पन्नों में मिलते हैं वो गुजर चुके ढेर सारे साल। कुछ मिला ही नहीं, कुछ कमा ही नहीं पाए जिसे अब महसूस करें। जमा-पूंजी - खाली, क्यूंकि कुछ हासिल करने के लिए वक़्त ही कहां था?

तो देखते हैं ये सारा समय जाता कहां है। अगर हम अपने रोज़ के दिनों पर एक नज़र दौड़ाएं तो पाएंगे की कुछ काम हमारे ऐसे होते हैं जिसके लिए हम ज़रूर समय निकाल लेते हैं और कुछ ऐसे भी होते हैं जो आखरी समय में किये जाते हैं। फिर आते हैं ऐसे काम जिसके बारे में हम बस सोंचते रह जाते है, करते नहीं। आप ज़रूर इस बात को मानेंगे की जो काम आपका सबसे ज़्यादा वक़्त लेते हैं उसमे से थोड़ा सा वक़्त आप अपने उन कामों के लिए ज़रूर निकाल सकते हैं जो छूट ही जाते हैं। 

यकीन मानिये अगर आप ये समय अपने मन के कामों को करने में लगा देंगे तो आप बहुत हद तक अपनी बेचैनी और चिड़चिड़ाहट से बच जाएंगे। क्यूंकि आप खुद को खुश रखने के लिए भी कुछ कर रहे हैं। यह संतोष बड़ी प्रेरणा है जिसकी हर इंसान को ज़रूरत होती है। यही निकाला हुआ वक़्त इसलिए इतना कीमती है। इसे जाया हरगिज़ ना होने दें। ये लेखा-जोखा है ना कितना आसान सा। 

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मोबाइल, टीवी, सोशल मीडिया इसका सबसे बड़ा और खतरनाक दुश्मन है। आपने भी यह गौर किया होगा की जैसे ही हमे अपने दैनिक कामों से ज़रा सा भी समय मिलता है हम उसमे तुरंत मोबाइल हाथ में ले लेते हैं। और फिर सिर्फ 5 मिनट कब आधा या कई बार एक घंटा में बदल जाता है, ये तो चमत्कार है ही। ऐसी 'नीले' जादू से खुद को बचाएं। कोई ऑनलाइन चर्चा पे रेजिस्टर तो कर लिया पर समय से उसे अटेंड नहीं किया क्यूंकि घर की सफाई कर रहे थे या उसी वक़्त दोस्त आगये। योगा सीखा पर केवल पांच दिन ही किया क्यों की वक़्त नहीं मिलता। सारा मामला ध्यान का है। और खुद के कामों को तरजीह देने का। 

अगर सार्थक अनुभव की मंशा है तो सतह ताकने से कुछ नहीं होना। पानी में उतरना पड़ेगा, हाथ-पैर मारने पड़ेंगे, तभी संतोष वाले आनंद का तोहफा हम खुद को दे पाएंगे। और इसे जद्दोजेहद मानने की भूल ना करें। 

राह पर कितनी ख़ुशी है और कितनी थकान ये तो उसका राहगीर ही बता सकता है। अपने जीवन के रास्ते को रोज़-ब-रोज़ चुनौती की कसौटी पर कसिये। चुनौती जो आप देंगे खुद को और उसे पूरा कर ख़ुशी वाला आनंद हासिल करेंगे जिसे दर्ज करेंगे "क्या पाया" के पन्नों पर। तब जब एक दिन पलटेंगे उस डायरी को तो एक खजाना सा महसूस होगा क्यूंकि उस 'हासिल' खजाने की सूरत ओढ़ ली है। है ना ये सुखद! तो आइये, ऐसा करते हैं।  
 



   
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