जिंदगी संवारती 'कलम'कारी | Writing Therapy

गुजरते लम्हों को थाम लेती मेरी कलम 

What inspired you to become a writer?

किसी भाव को, अहसास को या अनुभव को बार-बार जीने के लिए शब्दों में सहेज कर कागज़ों की संदूक में संभाल लेना एक हुनर है, जिसे मैं बहुत प्यार करती हूँ। कागज़, कलम और अठखेलियां करते रहते मेरे ख़याल बचपन के पुराने साथियों में से हैं जिनकी बदौलत मैंने खुद को अकेला होने से हमेशा बचाया है। 

चाहे बलखाती नदियां हों, बेपरवाह बरसते झरने या मोह लेने वाले पुरुषत्व का अहसास दिलाने वाले रौबीले पहाड़ - या फिर मेरे कमरे की खिड़की से नज़र आने वाले नीम, गुलमोहरऔर अशोक के दरखत या गुड़हल की लचीली डालियां जो हमेशा सजी रहती हैं चटख रंग के फूलों से - जब उनसे पराग चुनने आयी नन्ही चिड़ियाँ मेरे खिड़की पे चहचहाती है, मेरी जिंदगी में आयी छोटी-मोटी परेशानी को फ़ौरन गुल कर मेरे दिल के आंगन को गुलज़ार कर देती है। 

मैं मुस्कराहट लिखती हूं तो आंसू भी लिखती हूं। अगर मैंने अपने लिए लिखने की आज़ादी नहीं बनाई होती तो बहुत मुमकिन है की मेरे लिए ये जीवन असहनीय हो जाता। यूं ऐसा भी नहीं है की मेरा लिखा सब कुछ वायरल हो जाये। और ऐसा होना ज़रूरी भी नहीं। यार मैं अपनी ही उमीदों पर हमेशा खरी नहीं उतरती तो लाज़मी है की मैं दूसरों की उमीदों पर भी खरी नहीं उतर पाउंगी। 

लेखन एक थेरेपी भी है। जब हमारे भीतर विचार कुलबुलाने लगें तो उन्हें शब्दों में ढाल कागज़ पर उतार कर हम हमारे मन पर लगे दरवाजों को खोल देते हैं, इस से मुक्त करने में मदद मिलती है। तब हमारे अंदर एक स्पष्टता आने लगती है, ठीक साफ़ पानी की धरा की तरह। कोई यह कतई नहीं चाहता की उसका मन बोझिल रहे। हम सबको अपने लिए एक साफ़ नदी चाहिए। 

लिखते वक़्त मूड फ्लेवर का काम करते हैं। जिस भाव में होते हैं बस वही तड़का लग जाता है। कभी ख़ुशी से उछल रहे होते हैं, कभी जिंदगी को शिद्दत से प्यार कर रहे होते हैं, कभी हताश, बैचैन। 

मेरे प्रिय लेखकों की तरह मैं भी लेखन को जिंदगी बनाना चाहती हूँ। यह फैसला थोड़ा कठिन है पर किया जा सके ऐसा भी है। नौकरी - सुरक्षा - सहूलियत - शादी आदि आदि के साथ यह कैसे सम्भव है? पता नहीं। एक अच्छी नौकरी एक सुरक्षित भविष्य बना सकती है, पर क्या खुशनुमा ज़िन्दगी भी बना सकती है? पता नहीं। 

तो फिर पता क्या है? मुझे यह पता है की मुझे अपनी जिंदगी आज़ादी के साथ साथ जीनी है और जो जिया है वह लिखना है। जो भी लिखा है दिल से जीया होगा। जिंदगी पर पकड़ कभी ढीली नहीं होने देनी है। कई बार लेखक आर्थिक सुरक्षा की चिंता में समझौता करने लगते हैं। बस, मैं यही नहीं करना चाहती। 

मैं खुशमिज़ाज़ लेखिका बनना चाहती हूँ जिसे यारों जैसे पाठक गंभीरता से पढ़ें।


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