कभी - कभी, जब अंधेरा ज़्यादा घना हो जाता है, तब नज़र आने लगता है

दिखा तब, जब अंधेरा छा गया 

how to bring inner strength when it feels like you are alone


कहते हैं, अंधेरे में दिखना बंद हो जाता है। रौशनी ही आंखों की सहेली है। और अंधेरा रौशनी का साथी। कैसे? जब  तक अंधेरा नहीं होगा, रौशनी अपने पूरे अस्तित्व में नहीं आ सकती। इसलिए जिंदगी का ताना-बाना इन्ही धागों से बुना है। कभी हर तरफ खुशहाली रौशन है, कहीं इम्तिहान दस्तक देता है।   

तो क्या हो जाता है जिंदगी में ऐसा जो अँधियारा फैलने लगता है?


आते हैं हालात ऐसे जब नाते-रिश्ते, दोस्त, सब बेगाने हो जाते हैं। जाने कोई क्यों नहीं समझ पाता हमें उस वक़्त जब सबसे ज़्यादा ज़रुरत होती है भरोसे की? जब आस के धागे चिटकने लगते हैं, परवाह हाथ झटकने लगती है, सयम मायूस होने लगता है, मन के सहारे लड़खड़ाने लगते हैं, तब हक़ साहस नहीं कर पाता। 

बस, तभी लगने लगता है की अब जिंदगी में उत्साह, ख़ुशी, उमंग, चाह, खो गए हैं। और जहां कुछ नहीं, वहीं अंधेरा तुरंत घर बनाता है। 

क्या अंधेरे में रह पाएंगे? 

नहीं। एकदम सीधी बात है ना। तो उजाले के लिए क्या किया जाए? सबसे पहले तो स्वीकार लिया जाए। की ये आजमाइश का समय है, जिंदगी हमें और बेहतर और मजबूत बनाने के लिए ऐसी भूमिकाएं बनाती है। इसलिए घबराना या असुरक्षित महसूस करना बिलकुल ठीक नहीं रहेगा। ऐसे में सब रोक दिया जाए और ख्यालों को वही पुराना पाठ फिर पढ़ाया जाए की "चलती का नाम जिंदगी" यहां कुछ ठहरता नहीं है, अँधेरा भी नहीं। 

पर ये सब अचानक नहीं होता। वक़्त लगता है, जब अंधियारा मथता है तब हौसलों का माखन निकलता है। पर जब कभी जिंदगी में दुखों का मौसम आता है, कई बार तब हमें अपनी संभावनाएं ज़्यादा बेहतर समझ आने लगती हैं। ये वो उमीदों  रोशनदान हैं जो हमें तभी नज़र आती हैं जब हर दिशा में दरवाज़े हमे बंद मिलते हैं। 

सुना होगा, जो व्यक्ति सारी रात रोया हो वह सुबह तक बेहद मजबूत हो जाता है। वह झांकता है भीतर। क्यूंकि वही रास्ता है। वो जो अंदर बैठा है, वही साथ है, वही साथी है। इस भूलभुलैया का नक्शा उसी के पास है। 

नहीं याद रहता हमे ये सब क्यूंकि ये अंदर की बात है। रिश्ते-नाते, यार-दोस्त जो सामने है, हम पहले उन्ही को देखते हैं सो उन्ही से उम्मीद भी करते हैं। करना भी चाहिए। ये ग़लत नहीं है। पर जब ऑंखें खालीपन ताकने लगें तब अंदर की पगडण्डी पर चल पड़िये। यहां भटकाव नहीं है। यहां सुकून रहता है। मिलिए उस से। और सब बताइये उसे। यकीन मानिये, सारे जवाब मिल जाएंगे। और नयी राहों, नयी संभावनाओं के दीप जगमगाने लगेंगे। 

तो कुछ ऐसे नज़र आने लगता है, जब अंधेरा ज़्यादा घना हो जाता है। 




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