हार


 जरा गौर से देखिये, हार बड़ी चुलबुली होती है। अब तक हम सभी ने ना जाने कितनी ही बार हार का सामना किया है। कभी बचपन में, तो कभी पहले नज़र वाले प्यार में, कभी नौकरी में, तो कभी अपने सपनों से ही ऐसे कई सारे मौके आए हैं। और क्या है यह हार ? जब कोई बात हमारे हिसाब से न हुई हो।  क्यों? ऐसा ही होता है ना। मन की ना हुई तो अहम का सवाल बन गया। मूड खराब कर लिया। मुंह बना के बैठ गए। बात कैरी बंद कर दी। और कभी कभी तो लड़ भी लिए। 


हमे ऐसा लगने लगता है की कोई दरवाजा या रास्ता बंद हो गया है। फिर हम क्या करते हैं ? ज़्यादातर तो वहीं खड़े होकर अफ़सोस दुःख मनाने कागते हैं। चलिए, ज़रा याद करिये, जब आप बहते पानी को रोक देते हैं तो क्या वह वहीं रुक जाता है, सर पटककर हार जाता है? नही। पानी नई राह पर मुड़कर, नया रास्ता खोजते हुए सिलसिले को आगे बढ़ाता है। 


इंसान भी हमे निराश करते हैं। रिश्ते भी हमारी उम्मीद पर नहीं चलते। वैसे आगे नहीं बढ़ते जैसी राहें हमने उनके लिए बनायी हैं। तो  क्या करें? इस निराशा को प्रेरणा समझें जो रौशनी को ढूंढने के लिए कह रहा है। उम्मीद का वजूद कभी नहीं हारता । धुप का छोटा सा टुकड़ा साए के पहलू में ही चमकता है। 


तो जब दरवाजा बंद मिले, पता है ना क्या करना है ? 


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