कहीं ज़्यादा तो नहीं सोंच रहे!!

ओवरथिंकिंग दीमक है, धीमे-धीमे सब खा जाता है 

overthinking Indian women



सोंचना गलत नहीं है, बिलकुल नहीं। पर जब हम ज़रुरत से ज़्यादा सोंचने लगते हैं तो परेशानी ओढ़ लेते हैं। दिमाग अपनी रचनात्मकता छोड़, केवल तनाव को घर कर लेता है। दिल इतना तेजी से धड़कता है मानों अभी 100 मीटर दौड़ कर आए हों। रगों में खून की जगह तनाव ही बहने लगता है। छाती, साँसों की जगह सैंकड़ों टन घबराहट से ही भरने लगती है। मन, माथा, मिज़ाज़ सब बेहद भारी हो जाता है, जिंदगी के ज़ायके कसैले हो जाते हैं। हर वक़्त तकिया पकड़कर लेटने का मन करता है। एक अनकहा असुरक्षा का भाव, घाव बनाने लगता है। 


क्यों ज़्यादा सोंचने लगते हैं?

जब हमारे मन का नहीं होता। जब सामने वाला हमारे हिसाब से नहीं चलता। कई बार तो ऐसा होता है की हम सभी परिवार वालों को अपने हिसाब से ढाल भी लेते हैं, पर फिर भी तसल्ली नहीं, क्यों, क्यूंकि तब भगवान आपकी सोंच (प्लानिंग) से अलग कुछ कर देता है। अब ईश्वर को कैसे अपने अनुरूप ढालोगे? इसलिए हमेशा आपके मन का नहीं होगा।   

क्या आप दूसरों के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं?

ऐसे लोग जब अपने घबराहट का, असुरक्षा का, अकेलेपन का राग आलापते रहते हैं, तब ज़ाहिर है लोग इसने बचना चाहेंगे, इनकी नकारात्मकता को दूर से प्रणाम कर और दूर ही रहना चाहेंगे। टूटा हुआ व्यक्ति अगर कोशिश ही ना करे तो भगवान भी उसे नहीं जोड़ सकते। अपनी चिंताओं और अकेलेपन को दूर करने के लिए किसी का इंतज़ार करेंगे तो बस इंतज़ार ही करते रह जायेंगे। मान लीजिये किसी को ज़बरदस्ती अपने पास बुला भी लिया तो उसके भीतर के मन को कैसे मना पाओगे? जब तक कोई पूरे मन से आपके पास नहीं आता, आप ज़बरदस्ती उसके गले पढ़कर अपना अकेलापन दूर कर ही नहीं पाओगे। ज़रूरत है मानसिक रूप से भी आत्मनिर्भर बनने की। जो मन से खुश मिज़ाज़ होते हैं, किसी के होने या ना होने का इंतज़ार नहीं करते, उनसे दुसरे भी प्रभावित रहते है। ऐसे आत्मनिर्भर लोग प्रेरणा देते हैं अकेलेपन का रोना रोते हुए लोगों को। इनके पास सब जाना भी चाहते है, बिना बुलाये। 

ज़्यादा सोंचने से कैसे बचा जा सकता है? 


दिमाग को सोंचने का ज़्यादा समय ना दें। कुछ करने लग जाएं। जैसे की कोई रचनात्मक काम। 

नाते - रिश्तेदारों से मिलना, बातें करना भी अच्छा है, पर इसकी भी आदत नहीं बननी चाहिए। क्यूंकि ऐसा करके आप फिर से अपनी ख़ुशी को सामने वाले पर निर्भर कर रहे हैं। फिर कल को वे आपके अनुकूल नहीं चले, तो ये वापस आपको तकलीफ देगा। उनसे बातें ज़रूर कीजिये, पर वे हमेशा आपके साथ बने रहेंगे, ऐसा कोई कामना ना कीजिये।  

छोटी खुशियां संजोइए, जैसे ही फ़िज़ूल बातें मन को भारी करने की तैयारी करने लगे, बस खड़े हो जाइये- कुछ ऐसा करने के लिए जो आपको तुरंत खुश कर दे। जिसे मीठे का शौक हो, मीठा खाये और अगर मन हो तो बना कर खाये। कहीं किसी जगह घूमने निकल जाये। किसी के साथ चलने का इंतज़ार किये बिना।  

ज़ायदा दूर नहीं जा पाए तो पास के बगीचे में टहला जाए। मुस्कुराते फूलों को निहारा जाए, पेड़ों की झूमती दालों को बाहों में भरा जाए, चिड़िया को पानी में अठखेलियां करती देखिये, गिलहरी को तेजी से खाना लेकर पेड़ की खोह में जाता हुआ देखिये। वहीँ घनी घास पर पूरे इत्मीनान से बैठ जाइये और खुली हवा को पूरे शरीर में भर जाने दीजिये। ये नन्ही कोशिशें बड़ा असर करती हैं। आज़मा कर देखिएगा ज़रूर।    

सबसे खूबसूरत बात - आज में जीएं। यही मंत्र है। और कल क्या होगा उसके लिए साहसी बनें। जो होगा, देखा जाएगा। आत्मनिर्भरता ऐसी हो की असुरक्षा कभी ना हावी हो। 
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