बैडरूम की खिड़की


मैं अपने बैडरूम की खिड़की से नीला आकाश, दूर तक फैले पहाड़, नीचे वादी में बहती नदी और दूर एक टीवी टावर देख पा रहा हूं। मैं अपनी खिड़की में बैठकर पुराने हिंदी फिल्मो के गाने गा सकता हूं, भले ही मुझे सुनने वाली कोई चिड़िया या गिलहरी ही क्यों ना हो। मैं अपने बिस्तर पर लेता रहकर भी खड़की से नीले आकाश को निहार सकता हूं, या टेबल पर बैठकर पहाड़ियों को देख सकता हूं या खड़े होकर नीचे चली जा रही सड़क पर नज़र रख सकता हूं। 

 

इन सभी दृश्यों में से सबसे अच्छा दृश्य कोनसा है? कुछ लोग कह सकते हैं पहाड़, लेकिन पहाड़ हमेशा एक-से रहते हैं। कुछ कह सकते हैं सड़क, लेकिन सड़क हइशा हलचलों भरी होती है। वहां हमेशा कोई न कोई मौजूद रहता है। ठठेरे, दरजी, प्रेसवाले, राहगीर, सेल्समेन, कार, ट्रक, मोटरसाइकिल, टट्टू वगैरह। सड़क कभी उबाऊ नहीं होती। अगर मैं किसी दृश्य का चुनाव करुं तो मैं आकाश को चुनूंगा। 

 

आकाश कभी एक सा नहीं रहता। आकाश में बदल ना हों, तब भी उसके रंगों की छटा बदलती रहती है। भोर का आकाश, दोपहर का आकाश, सांझ का आकाश, चांदनी रात का आकाश, तारों से भरा आकाश। ये सभी अलग - अलग आकाश हैं। और आकाश हमेशा परिंदों से भरा हुआ होता है। चीलें ऊंची उड़ान भरती हैं। मैना छज़्ज़ों के नीचे चहचहाती रहती हैं। चिड़ियाएं यहां-वहां फुदकती रहती हैं। कभी-कभी कोई तितली फड़फड़ाती चली आती है। गर्मियों की रातों में मेरे टेबल लैंप की रौशनी से आकर्षित होकर कीट-पतंगें कमरे में आ जाते हैं। मुझे उहे निकाल बाहर करने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है ताकि वे खुद को चोट ना पहुंचा लें। 

 

जब मानसून की बारिश होती है और बूँदें खिड़की के शीशों को थपथपाने लगती हैं तो मैं खिड़कियां बंद नहीं करता। फुहारों को पूरी आज़ादी से अंदर आने देता हूं। हाँ इस से मेरी किताबें या लैपटॉप ज़रूर बुरा मान जाते हैं। तो उन्हें उठा कर में कमरे के दुसरे कोने में बिठा देता हूं। बारिश के दिनों में आकाश और आकर्षित और रोमांचक हो जाता है। 

 

ठीक अभी मैं अपनी टेबल से घाटी में और पहाड़ों पर तैरते बादलों को देख सकता हूं।  बारिश थमने के बाद मौसम साफ़ हो जाता है।  आकाश का रंग और गहरा जाता है। गहरा गाढ़ा नीला। खिड़कियां जादुई होती हैं, क्यूंकि हर बार जब मैं खिड़की से आकाश को देखता हूं तो मुझे लगता है की महज़ पृथ्वी का यह कोना ही नहीं, बल्कि पूरा संसार मेरा अपना है।  


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