कैसे कहूं की इस मुश्किल घडी में तुम्हारे साथ हूं? | COVID19

कैसे मैं कहूं तुमसे, तुम्हारे दर्द में शामिल हूं मैं?  

how to say i am with you when someone ahs lost their loved one in covid


कोविड ने दूरियों को तीखा और असहनीय बना दिया है। ना बीमार की देखभाल कर सकते हैं, ना मिलने जा सकते हैं, ना किसी के चले जाने पर उसे अंतिम विदाई दे सकते हैं, ना शोक में ढांढस बाँधने उनके परिवार वालों के पास जा सकते हैं। कुछ कर सकते हैं तो वो है, फ़ोन। बस इसी पर सांत्वना दे सकते है। कैसे दें? क्या बोलें ? क्या कहें की उस दुखी कलेजे को संबल मिले, थोड़ा चैन आये?

जिसे हम देख भी नहीं सकते, ऐसे कोरोना वायरस ने हम सबकी ज़िंदगी को उथल-पुथल कर दिया है। सभी इस से अपनी हर संभव ताकत से झूझ रहे हैं। किसी का बिज़नेस ठप्प हो गया तो किसी की नौकरी चली गयी, परीक्षाओं का अता-पता नहीं, शादियां रुकी हुई और अब आ गई है बिछड़ने की लहर। 

दुख भरे कड़वे समय में हम में से कई असहाय, असुरक्षित, अभागे महसूस कर रहे हैं। उन से क्या बात करें, क्या कहें, समझ नहीं आता। कोनसे शब्द है वो जिसे कह देने से उनका दर्द कम होगा? उस व्यक्ति से बात हम करना तो चाहते हैं पर कर नहीं पाते। हम चाहते तो यही हैं की उस व्यक्ति की परेशानी, दुख को कुछ कह कर किसी तरह कम कर दें। ऐसे में हम उनसे कुछ सुना-सुनाया कहते हैं। जैसे, "मत रो", "दुखी मत हो", "सब ठीक हो जाएगा", "होनी को कौन ताल सकता है", "काल के आगे हम सब असहाय हैं", "जो हो गया स हो गया, इस पर ज़्यादा मत सोंचो", "इतना लम्बा जीवन है तुम्हारा, इसके बारे में सोंचो, आगे क्या करना है, वो सोंचो" आदि। 

यह सब कहते हुए हमे लगता है की उसे हल्का महसूस होगा, अच्छा लगेगा। जबकि असल दुख से गुज़र रहे व्यक्ति को इन सब बातों से संबल मिलने की जगह और रोना आता है, उसकी बेचैनी बढ़ जाती है, दुख हरा हो जाता है। उसे ऐसा लगता है की आप उसके दिल का हाल समझ ही नहीं पा रहे। वो खुद को ज़्यादा अकेला और हताश पाता है। फिर ऐसा भी हो सकता है की उस वक़्त जो मनस्थिति से वो गुजर रहा है, और चाहता है की अपनी बात किसी से कहे तो वह आपसे वो बातें नहीं करना चाहेगा, कुछ आगे कहने से बचेगा। 

तो आखिर क्या करें की उसका दर्द बांट लें, और उसका दिल हल्का कर दें? इसके लिए,आइये, पहले इस बात को समझने की कोशिश करते हैं की जब कोई किसी अपने को खो देता है तो वैसे में उसके दुःख को कम कुछ कह के कम कर हो नहीं सकते। उस भारीपन, उस घायल कर देने वाले दर्द को उसे झेलना ही पड़ता है। अब जब इसके सिवाय कोई उपाय ही नहीं तो फिर करें क्या? 

ज़रा याद कीजिये, हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार, जब किसी का देहांत हो जाता है तो उनके पार्थिव शरीर को प्रणाम करके, नाते-रिश्तेदार- मित्र उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होते हैं। फिर उनके घर जाकर उनके परिवार से मिलते हैं। ये सिलसिला हफ्ते-दो हफ्ते चलता है। उनमे से कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कुछ कहते नहीं हैं, बस चुपचाप उनके परिवार के सदस्यों के पास जाकर बैठ जाते हैं, कुछ कंधे से उनका सर लगा कर उन्हें रोने देते हैं, कुछ तो उनके साथ खुद भी रो लेते हैं, कुछ गले लगा लेते हैं। इन में से कोई भी उस वक़्त सलाह नहीं देने बैठता। 

अपनों के गुजर जाने की पीड़ा से गुजर रहे परिवार के साथ बने रहना ही अहम है। इतना भर कर लेना ही बहुत महत्वपूर्ण है। उस समय उस परिवार को सलाह से ज़्यादा आपके साथ की ज़रुरत है। खासकर की अब जब हम कोरोना की वजह से खुद जाकर कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। इसलिए इस बार शब्दों का महत्व और बढ़ गया है। क्यूंकि हम इस वक़्त सिर्फ शब्द ही पहुंचा पाएंगे उन तक इसलिए यह काम ज़रा और ध्यान से करने की ज़रूरत है।  

कुछ इस तरह अपनी बात कहिये उस भारी हृदय से,

मैं यह कल्पना भी नहीं कर सकती/सकता की आप पर इस वक़्त क्या गुज़र रही होगी रही होगी। 

मैं समझ सकती/सकता हूं की अब चीज़ें बदल जाएंगी। 

इस वक़्त खुद को बिलकुल अकेला ना समझना, मैं आपके साथ हूं।

अपनी बात मुझसे कह सकते हो, मैं यहीं आपके पास हूं।

रोना स्वाभाविक है, मेरे पास खुद को हल्का कर लो। 

मैं आपके साथ बने रहना चाहती/चाहता हूं। 

जब हम उनके साथ बने रहने की बात करते हैं, उनकी सुबकियों भरी बातें सुनते हैं, वो चाहे कितनी भी बार एक ही बात क्यों ना दोहराएं, फिर धीरे-धीरे उन्हें थोड़ी सांस आएगी, दुःख को सहन करने की क्षमता आएगी। हम उनका दुख मिटा नहीं सकते, इसलिए ऐसी कोशिश भी ना करें। उसे तो स्वीकार ही करना है। इसलिए उस दर्द को पीछे धकेलने या उसे नकारने या वहां से ध्यान हटाने की कोशिशें नहीं करनी। करना यह है की वह व्यक्ति उस दुख के तूफ़ान में खुद को स्थिर और सहस से भरा हुआ महसूस करे। हालातों से लड़ना या भागना नहीं है, स्वीकार करने की हिम्मत और सहन करने का संबल लाना है।     



   


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