आओ, बैठो ना, कुछ बात करें

आपका 'होना' सब अच्छा कर देता है 

how to fix communication in a relationship?


हक और शक की बहुत सुनी अब थोड़े से जज्बात करें। बैठो ना, कुछ बात करें


यादों ने बहुत संभाला है बीती रातों में आपको और मुझे। अब जैसे हम ख़ामोशी की अंताक्षरी खेल रहे हैं। मिले जब ख्यालों में कभी तो कहूँगी, आओ, बैठो ना, पास मेरे। कुछ कदम साथ में, अच्छे ही थे, फिर रहें बदल गयी और हम हमराही से महज राहगीर रह गए। जिंदगी पहले ही कहां बड़ी होती है, पर अहम बड़ा होता है, सबसे बड़ा। 

हर बार की तरह मैं अब ये नहीं कहूंगी, की आओ फिर से शुरू करें। जानती हूँ बहुत तनहा आप भी हैं, इसलिए कह रही हूँ, आओ, बैठो ना, पास मेरे, बात करें।

बाहों को खोलो ज़रा, थोड़ा और पास आने दो। जो रुक गयी हैं बातें, चलो करते हैं। हमारी खामोशियां भी बातें किया करती थी याद है? आजकल वे भी चुप हो गई हैं। पहले 3 इंच की स्क्रीन में आपका नाम पढ़ने की एक आदत हुआ करती थी। अब स्क्रीन थोड़ी बदल गयी, 5.5 की हो गई है। और हमारी आदतें पूरी ही बदल गई। 

जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है की मेरा एक टुकड़ा आपने रखा हुआ है। शायद यही कारण भी होगा की मैं हर बार पूरा होने की कोशिश भी करती हूं। कई बार ऐसा ही लगता है की प्यार था भी या कुछ और ही था। प्यार ही होगा। वरना इतनी नासमझियों के बाद भी पास होने की समझ ना होती। 

जो समझता है वही प्यार कर सकता है। ये हमारे जीने की लिए उतना ही ज़रूरी है जीतना की कोई पोषक तत्व। बिना भाव बिना प्यार का व्यक्ति तो मशीन हुआ। वह पैसा बनाने में जुट गया है , कभी ना रुकने की कसम खाये। पैसा भी ज़रूरी है। पर जो अनुभव ना दे पाए, भाव को नज़रअंदाज़ कर दे, उस पैसे से ज़्यादा नहीं जी पाएंगे। सुखद अनुभूति को बचाये रखना ज़रूरी है यार। इसके लिए प्यार ज़रूरी है। इसके लिए कुछ अहद तक आप भी ज़रूरी हो। 
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