सुकून का सबब

थोड़ी दूरी, है ज़रूरी 

Detachment to restore emotional balance


चाहे कोई परिस्थिति हो, कोई व्यक्ति या कोई चीज़, किसी का स्वरुप हमेशा एक जैसा नही रहता। ऐसे में हम जब किसी के साथ बहुत गहरा जुड़ जाते हैं तो बदलाव आने पर पहले तो हैरान हो जाते हैं फिर दुःख हमे लम्बे समय के लिए घेर लेता है। फिर हम फड़फड़ाते हैं सुकून वाली सांसों के लिए। अब ये सुकून भरी सांसें कहां मिलेंगी? ज़्यादा कुछ नहीं बस थोड़ा सा अलग कर लीजिये खुद को इन सब से। Detachment कहते हैं इसे। सच में, यही है सुकून का सबब।     

क्या है Detachment? 

नहीं, इसका मतलब साधु - संसायी बन जाना बिलकुल नहीं। रहना वैसे ही है जैसा अभी रह रहे हैं, सबके साथ। बस खुद के होने को सब से थोड़ा सा अलग करके महसूस करना है। खुद को ये समझाते हुए की बदलाव तो लगा रहता है। इसलिए अपनी संवेदनाओं को किसी भी स्थिति या इंसान यहाँ तक की किसी प्रिय चीज़ के साथ इतना कभी नहीं जोड़ना की उनके बदल जाने या चले जाने से हम अपना सहज सुकून ना खोएं।    


कैसे हों Detach?

 प्रभाव आप पर हावी ना हो 

अब चाहे किसी का प्यार ही क्यों ना हो हम पर इस कदर हावी ना हो जाए की हमे अपना गुलाम ही बना ले। लगाव अच्छा है, ज़्यादा बुरा है। 

Surprise की आदत डालें 

यह पचाना बहुत ज़रूरी है की कुछ भी हमेशा के लिए नहीं बना रहता। समझें और मान लें। कभी भी कुछ भी हो सकता है। हो सकता है वो आपको पसंद आए, है ना भी आए। कोई भी इंसान आपको अचानक छोड़ सकता है या आपसे दूर भी जा सकता है। कोई चीज़ जो आपके दिल के बेहद करीब है वो ख़राब हो सकती है। कभी कोई हालात बिगड़ सकते हैं। आपकी आय भी कभी भी एक सी नहीं रहेगी। इस तरह की तमाम बातें है जिनके लिए मन अगर पहले ही संभला हुआ है तो इनके होने या ना होने से बहुत ज़्यादा घबराहट नहीं होगी। 

खुद के साथ बैठें 

ये क्या होता है? जब हम अपने मन की अंगुली पकड़ कर अपने ज़हन में उतरते हैं। ख्यालों के चप्पू चलाते हैं। फिर धीरे-धीरे सब कुछ किनारे कर, नीचे उतर जाते हैं और गोते लगाते हैं गहराई तक। तब भीतर एक संवाद शुरू होता है। देखिएगा, एक बार जब अपने आप से बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाएगा तब लगेगा की ये पहले क्यों नहीं किया। लगेगा जैसे जिसके  बैठने के लिए, मन की हर एक बात कह देने के लिए, जिसे अब तक ढूंढ रहे थे वो यहीं  इतना करीब, हमारे ही भीतर कहें, भीतर वाले हम ! 
खुद को एक दर्शक समझे

खुद को एक दर्शक समझे

क्यों इतने गंभीर हैं? ये महज एक खेल है। हां बिलकुल, यही सच है। हम यहां एक दर्शक या एक पर्यटक की तरह आए हैं। तमाम चीज़ें हमारे सामने से गुजर रही हैं, इनके साथ जो चाहें वो कर सकते हैं। गौर से महसूस कर सकते हैं, कुछ सीख सकते हैं, कुछ सिखा सकते हैं, प्यार कर सकते हैं फिर वापस लौटना है तो फिर घबराना क्यों? जी चाहे वो करें। ताकि जब आपका time-up हो जाये तब ऐसा लगे की मज़ा आया।     
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