क्या यही प्यार है?

हां, परवाह ही प्यार है  

Indian couple in love




ज़िन्दगी में प्यार रंग-बिरंगे कागज़ों लिपटा हुआ नहीं मिलता। प्यार महसूस होता है परवाह के सादे स्वभाव में। जब आप कहते हैं की आप उनसे बेहद प्यार करते हैं तब आप खुद से ज़रा पूछिए, क्या आप उनकी परवाह करते हैं? या इस तरफ कभी ध्यान ही नहीं गया!

ढेर सारे तोहफे, तारीफें, सबके सामने फिक्र जताना। क्या ये सब वाक़ई प्यार की निशानियां हैं? हमारे इन प्यार और स्नेह के रिश्तों को नापने का वैसे तो कोई पैमाना नहीं होता, पर एक भाव ज़रूर होता है, एक ऐसा भाव जिसमे प्यार साफ़ झलकता है, बिना किसी दो राय के, आईने जैसा। वही भाव है परवाह का, दुलार का। इन भावों का इज़हार जताकर या कहकर नहीं होता, बल्कि यह तो हमारे सहज स्वभाव से आने वाली महक है। वो छोटे-अनदेखे पल जिन्हे हम अक्सर आम बात कहकर गौर नहीं करते, पर जिनकी आप परवाह करते हैं, जिनको आप दुलार करते हैं, वे आपके इस मीठे स्नेह को सहज ही समझ लेते हैं। 
    

परवाह का इजहार कुछ ऐसे होता है ~ 

उनकी ख़ुशी में खुश 

सहज परिस्थिति में तो आप खुश रहते ही हैं पर जब आप नाराज़ हैं और तभी उनके जीवन में कोई बड़ा दिन आया है, तब आप अपनी नाराज़गी उस खुश-लमहें पर हावी ना होने दें। दोनों साथ में उस दिन को सजा दें, प्यार से। और नाराज़गी थोड़ा इंतज़ार कर लेगी, सुलझने के लिए :)  



आराम और सुकून का ख्याल 

 office, घर, परिवार और तमाम व्यस्तताओं के बीच भी उनके सुकून का ख़याल उन्हें अपनी जिंदगी में ऊर्जा देता रहेगा। सवाल बेहद साधारण है पर असर गहरा करता है, "खाना खा लिया?" कभी-कभी पूछ लिया करें। (रोज़-रोज़ पूछ कर उन्हें कंटालें भी ना) कभी उनके कहे बिना ही चाय बना दें।  



शब्दों की चोट ना लगे 

तीखा जितना जीभ को नहीं लगता उस से कहीं ज्यादा मन को लग जाता है। तीखी जबान बहुत अंदर तक लहरा देती है। कोई सही बात कहनी भी हो जो सीधे से कहने में उन्हें बुरी लग सकती है, ये हमे पता है, फिर क्यों उन्हें दुखी करना? उस बात को कहना का लहज़ा मीठा बना लीजिये।  

उन्हें 'सुनिए'

हम सबका मन हमेशा कुछ ना कुछ सोंचता रहता है, कई सारे भाव मन में आते हैं, विचार आते हैं। हमारा जी करता है की हम ये साड़ी बातें किसी अपने से साझा कर लें। वो सब कुछ कह दें उनसे जो 'सुनेगा'। पूरे सरोकार के साथ उन्हें सुनिए। उन्हें हल्का महसूस करता देख आपको भी अच्छा लगेगा।    

साथ, बिना उम्मीद के 

मुश्किल वक़्त में उनके मदद मांगने से पहले ही उनके साथ खड़े रहना। क्यूंकि आपको परवाह है , आ उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकते खराब हालातों में।  

बिना उलझे संवाद 

बातचीत के दौरान उलटे जवाब ना दें। यह तो किसी को भी रास नहीं आएगा। आपको भी नहीं। सीढ़ी -सहज भाषा ही सबसे अच्छी भाषा है। क्यूंकि सबके लिये इसे समझना आसान है। 

वादे निभाना 

जब हम किसी से वादा करते हैं तो उन्हें उनकी अहमियत का इत्मीनान भी देते हैं। इसी भाव को इज्जत देना परवाह का सूचक है। तभी तो वादा निभाना ये बताता है की आपको उनकी परवाह है। 

नाराज़गी बिना इल्जाम लगाए 

"तुम्हे कुछ समझ ही नहीं आता।" की जगह "आओ ना, बैठ कर बात करते हैं।" दुसरे कथन में बात वही कही गई है पर शब्दों और भाव का चुनाव अलग था। यहां परवाह महसूस हुई ना। 

सब्र, थोड़ा बर्दाश्त 

गलत कभी सहन मत करो। बेशक, ना करो। पर कई बार, टूट जाने से बचाने के लिए अगर थोड़ा शांत रह लिया जाए तो सौदा कितना सस्ता है! अगर उनके बात करने का कोई तरीका, उनका कभी स्वभाव, या कोई अलग सा रवैया आपने कभी कबार सहन कर लिया तो अपने अनकहे ही उन्हें ये भाव दिया है की आपको उनकी परवाह है, इसलिए तो आपने उन्हें पलट कर कोई जवाब नहीं दिया। पर साथ ही ये स्वभाव अच्छा तो नहीं है और इस से उन्हें आगे कोई न कोई नुक्सान हो ही सकता है सो उन्हें उस स्वभाव में बदलाव लाने में प्यार से ही मदद कीजिये। यही परवाह है।  

भरोसा  

जब आप उनसे प्यार करते हैं तो उन पर यकीन करना प्रमाण है इस बात का। यही संकेत है की आपके रिश्ते में शहद बराबर है। और अगर कभी कुछ ऐसा हो जब चीज़ें तो भी अपना हाथ मत खींच लीजिये। उनसे बातें कर माहौल हल्का बना लीजिये और भरोसे की मिटटी को फिर से जमा लीजिये अपने प्यार की जड़ों से।  

बांधना नहीं उन्मुक्त रखना ही प्यार  

इस भाव को ध्यान से समझें। पिंजरा कभी किसी चिड़िया को रास ना आया फॉर चाहे वो सोने का ही क्यों ना रहा हो। बस वैसा ही है। दुनियां भर के साजो सामान दे कर उनसे अपने स्वभाव अनुसार चलने की उम्मीद करना बिलकुल गलत है। आज़ाद सांसें छाती को भारी नहीं होने देती वैसे ही रिश्ते की सेहत के लिए भी यह उतना ही ज़रूरी है।    

परवाह का प्यार और दबाव की घुटन अलग है 

स्नेह भरी फिक्र है परवाह। जैसे ही आप फिक्र से नियंत्रण (control) पर आ जायेंगे तब उन्हें यही भाव प्यार भरा नहीं बल्कि दबाव लगने लगेगा। और यही घुटन रिश्ते की दीमक है। हमे पता ही नहीं चलता कब चीज़ें खोखली हो जाती हैं और हमारे पास महसूस करने को केवल भावों के अवशेष ही बचते हैं। इसलिए control करने से बचें। दबाव को कैसे भी सही नहीं बताया जा सकता।  
 

और ये सब बिना कहे ही ज़ाहिर हो जाती हैं। 

यही है ना जो हम सब अपने 'उनसे' चाहते हैं। 
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