ये जवानी है दीवानी


विवेकानंद कहते ही एक ऐसी तस्वीर सामने आती है जिसके बारे में लिख नहीं सकते, उस भाव को महसूस कर सकते हैं बस। आप अभी जब इन तस्वीरों को देख रहे हैं तो कैसा महसूस कर रहे हैं ये मैं समझ सकती हूँ। ये एक ऐसी सख्सियत हुई है भारत में जिन्हे लगभग सब ने ही अपना गुरु माना है। चाहे वह व्यक्ति किसी भी क्षेत्र का हो, न सिर्फ पढाई,खेल, राजनीति या सिनेमा ही क्यों ना हो, हमने स्वामी जी तस्वीर अनेकों जगहों पे देखी है। 



यूँ तो स्कूलों, कॉलेजों आदि में स्वामीजी के बारे में पढ़ा भी है और इनके कहे शब्दों को quote भी किया है पर ज़्यादा करीब से मैंने स्वामी जो को किताब के जरिये जाना। नरेंद्र कोहली की लिखी  "तोड़ो, करा तोड़ो", ये कुल 6 किताबों का सेट है। तब मैं पढ़ने की इतनी शौक़ीन भी नहीं हुआ करती थी। पर मैंने वो 6 किताबें महज कुछ दिनों में ही पढ़ डाली। फिर वही कहूँगी की बता ही नहीं सकती कैसा अनुभव रहा वो। ये विस्फोटक सामग्री है, आपके उलझे हुए मन को उस ऊर्जा से भर देती है जिसकी आपको ज़रुरत पड़ती है खुद को तब तक लगाते रहने की जब तक लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाती। 



आज के दिन को भारत युवा दिवस के रूप में मनाता है। हम सभी के आदर्श स्वामी विवेकानंद की आज 12 जनवरी 2020 को 158वीं जयंती की अनेक-अनेक शुभकामनाएं।   

जिन्होंने महज 39 साल में बता दिया जीवन सार्थक होने के लिए उसे लम्बा नहीं, बड़ा होना चाहिए। आइये थोड़ा विस्फोट किया जाए जो ज़रूरी भी है हमारी बार-बार थक जाती या सो जाती या धीमी हो जाती ऊर्जा के लिए।   

स्वामी जी कहते हैं -

सबसे बड़ा पाप ही खुद को कमजोर समझ लेना है। बेशक हालात हमारे बस में नहीं रहते हैं कई बार या अनेकों बार भी, पर उन परिस्थितियों से बहार हमे अगर कोई निकल सकता है तो वो हम खुद ही हैं। किसी का इंतज़ार करने बैठेंगे तो इंतज़ार ही करते रह जाएंगे। शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक तौर पे जो भी हमे कमजोर बनाता है उसेदूर हो जाइये। इसलिए अपने आप को कमजोर कभी न कहें , ना कभी मानें।   

ये जो जिंदगी हम जी रहे हैं इस में हमे क्या कुछ नहीं करना पड़ता? न जाने कितनी ही बार हम गिरते हैं, धोखा खाते हैं, हमारे विचार दरकिनार कर दिए जाते हैं, हमारी तैयारी कई बार धरी की धरी रह जाती है, हम टूटते हैं, बिखरते हैं, पर फिर सँभालते हैं फिर जीते हैं और जीतते हैं। ये सारी कसरत इस बड़े से gym जिसे हम दुनिया कहती हैं इसी में तो होती है ताकि हम मजबूत बन सकें।    

जब भी ऐसा मौका आ जाए की हमे दिल और दिमाग में से किसी एक को चुनना पड़े तो ऐसे में दिल की ही सुनिए। क्यूंकि तर्क तेज़ धार वाला चाकू है, हालातों का खून ही कर देता है। दिल के पास भाव है। वो महसूस करना जानता है। और यहाँ इस धरती पे हम महसूस ही करने आएं हैं।    

कुछ भी करने का मज़ा तब है जब उस में अपने आप को पूरी तरह से झोंक दिया जाए। बाकी सब कुछ भूल कर। और तभी हम किसी नतीजे के बारे में सोंच भी सकते हैं। ऐसे में तो एक समय पर एक ही काम हो पाएगा इसलिए एक ही करिये पर पूरा दिल लगा कर।  

जो आग हमे सर्दी में गर्माहट देती है, सुकून देती है वही आग तो है जिसमे हमारा शरीर आखिर में भस्म होता है, सब खत्म हो जाता है। अब इसमें हम आग को दोषी नहीं मान सकते। है ना? 

सोंचना, महसूस करना, चिंतन करना बहुत ज़रूरी है। विचार बड़े कीमती होते हैं। जब भी जहन में आएं, उन्हें आने दें, नए विचारों को जन्मा लेने दें। ये दूर तक यात्रा करते हैं। हमारी सोंच इसी से तो बनती है। और हाँ, चिंता नहीं करना है। यही काम बिगाड़ती है। इसलिए ज़रा ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं।

एक बात तो पचानी पड़ेगी की चाहे आप अच्छा भी करेंगे तो कोई उसे महत्व नहीं देगा पर जैसे ही आपसे कोई चूक हो गयी नहीं की दुनिया आपका सर खा जाएगी। और कई बार सगे भी ऐसा कर देते हैं, तो हैरान ना होना यार। भावुक अक्सर ठगे जाते हैं।

  



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