अकेलेपन की उम्र हमारी उम्र से बहुत लम्बी है

अकेलेपन की उम्र शायद इस धरती से भी ज़्यादा लम्बी लगती है। हर शख्स को उसके हिस्से का अकेलापन मिलता ही है। कोई अपने वक़्त के किसी हिस्से में कभी तो अकेला रहा ही होता है। इस तीखे रूखेपन का ज़ायका उपरवाले ने सबको बांटा है।  

बेआवाज़ हो जाना खिलखिलाती ज़िन्दगी पे एक तेज़ फटकार जैसा है। होते हैं कुछ ऐसे सफर जो अकेले ही तय करने पड़ते हैं। इंसान आकर चला जाता है पर उसका अकेलापन यहीं रह जाता है। 

डर लगता है ना, अकेले रह जाने से। खबर का अच्छा या बुरा होने का फर्क खत्म हो जाता है। क्यूंकि कोई है ही नहीं उस मीठे या खट्टे भाव को बांटने के लिए। अहसासों का कोप भवन में बैठ जाना ठीक नहीं है। साँसों में भारीपन महसूस होने लगता है। 

इसलिए जब कोई मिले तो लीजिये। उनके साथ तमाम अनुभव साझा करने का कोई भी मौका ना छोड़िये। प्यार करिये। उन सभी खाली जगहों को भर लीजिये। ये ज़रूरी है। साथ सफर को आसान बना देता है। आप मानेंगे की सबसे वाला भी एक दिन छोड़कर चला जाता है। 

पर फिर भी हमने प्यार करना नहीं छोड़ा। यही प्रेरणा है। 



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