पात्र को ही प्राप्त होता है


कुछ भी पाने के लिए पात्र बनना पड़ता है। 

जितनी म्हणत हम अपनी नौकरी में करते हैं उस से थोड़ी ज़्यादा म्हणत हमे खुद पर करनी होगी। यह काम ज़िन्दगी भर चलने वाला है इसलिए चुनौतीपूर्ण भी है। 

हम जो बनते हैं वह हमे मिलने वाली चीज़ों से बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण है। 

पाना और मिलना जुड़वाँ भाइयों की तरह है - आप जो बनते हैं वह सीधे सीधे उस पर असर डालता है, जो आपको मिलता है। 

यूं समझिये - आप आज जो हैं, उसका ज़्यादातर हिस्सा अपने खुद आकर्षित किया है और वह व्यक्ति बनकर किया है जो आप आज हैं। 

आपके पास जितना है, उस से ज़्यादा पाने के लिए आपको अपने वर्तमान स्वरुप से ज़्यादा बनना होगा। जब तक आप इसे नहीं बदल लेते तब तक आपको हमेशा वही मिलता रहेगा, जो अब तक मिला है।     

अपनी पात्रता बढ़ाते रहने से खुद को बेहतर बनाने में आसानी रहेगी। 

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