जब कोई आपसे कहता है की वो आपसे मिलना चाहता है


जब कोई आपसे कहता है की वो आपसे मिलना चाहता है तो वो आपसे कहना चाहता है कि आपका उसके साथ होना उसे अच्छा लगता है। आपके होने से उसे अनिश्चितताओं की मौजूदगी महसूस नहीं होती। उसे आपकी बातों में उतरना सुकून देता है। आपका नजरिया और कहने का अंदाज़ उसे खींचता है। वह आप में शायद खुद सा कुछ पाता है। 

जब कोई आपसे मिलना चाहता है तो आपके ज़रिये शायद वह खुद से मिलना चाहता है, खुद के पास आना चाहता है, खुद से बातें करना चाहता है। आपके ज़रिये वह खुद को महसूस करना चाहता है। 

और फिर जब आप जवाब दने में वक़्त लेते हैं तो वह अधीर होने लगता है। वो इनकार नहीं सुनना चाहता। वो एक गति में है, रुकना चाहता, बस मिलना है, उसे आपसे। उसकी संवेदना, भावना, उसके विचारों का वेग बहुत तेज़ है अभी।  कुछ इधर-उधर हुआ नहीं की  वो, फिर से। 

इस बिखराव से बचा लीजिये, उस से मिल लीजिये। और उसे भी धुंधला भरोसा आप उसे एक बार फिर से बिखरने से बचा लेंगे। यह धुंध हटाने में उसकी मदद कीजिये। अब उसे रफ़्तार से भागती -बदलती ठहराव की ज़मीन दिखने लगेगा। 

वह आपसे मिलकर अपने अपने घर-परिवार को संभाल लेगा, दोस्तों से नहीं भागेगा।

वह भी जानता है की यह महज़ एक मुलाक़ात है।  मुमकिन है आप उसकी ज़िन्दगी में आगे नहीं चलने वाले पर फिर भी वह आपसे मिलता है। मुलाकात के बाद आपको ऐसा अनुभव होता है की उसका एक हिस्सा अनायास ही आपके पास रह गया। 

आपका महज़ होना भर उसके लिए बहुत कुछ है। 

इसे किसी रिश्ते की संजीदगी में न उलझाना ही ठीक रहेगा। हर बार परिभाषित ही किया जाए, ये कतई ज़रूरी नहीं। परभाषाएँ एक निश्चित घेरे में बाँध देती हैं। बेशक वह ठहराव के लिए आपके पास आया है, पर बंधन के लिए नहीं। 

बातों - बातों में अपन एक दूसरे के मन की सतह से गहराव तक छू लेते हैं। वह आपको आँख भर निहारता है क्यूंकि आपका एक हिस्सा वह भी अपने साथ ले जाना चाहता है।   
           
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