इनकी 'चूं' सुनने के लिए कहीं कान तरस न जाएं!

इनकी चूं -चूं आबाद रहे

इन नन्ही जानों ने बिजली के ठन्डे तारों पर अपने पैर जमाना कैसे सीखा होगा?

birds sitting on electricity wires
 
चिड़िया के लिए दाना डालना और पानी के बर्तन रखने की प्यारी सी आदत बहुत लोगों में है। ऐसी आदतों की विरासत अगली पीड़ी को भी मिले ताके पक्षियों का जहान भी आबाद रहे। 

इसको ऐसे समझते हैं की हमारे सामने खाना और पानी रख दिया जाए तो क्या हमे खाने का मन करेगा?  जब तक खाने के लिए प्यार से कहा न जाए, बुलाया न जाए तब तक हम तो क्या, जानवर और पक्षी भी नहीं खाते। इसलिए महज दाना-पानी रख देने भर से बात नहीं बनती, चिड़ियों को दाना चुगने के लिए आमंत्रित करिये। 

हमे किसी का सहारा लेना अच्छे लगेगा या किसी की प्रेरणा? ऐसे ही पशु-पक्षियों सहारा नहीं बल्कि उन्हें पल्लवित होने देने के लिए माहौल बनायें। उन्हें फल कुतरने या फूलों से पराग लेने से ना रोकें। सुबह शाम उनका कलरव देख-सुन कर उल्टा हमे ही तो कितना आनंद आता है। 

जब बिजली की तारों पे उन्हें बैठा देखती हूं तो मन में घबराहट सी भी होती है की कहीं कुछ हो ना जाए उन्हें। ऐसा ही तो डर हमे लगता है न जब अपने बच्चे को उन तारों के पास जाता देखते हैं। अपनी सहूलियत के लिए पेड़ -झाड़ियों काट देने से हमने उनके बैठने के लिए कोई जगह ही नहीं छोड़ी। बिजली के तार! ये कैसे जगह है चिड़ियों के बैठने की? और तो और इसमें ना उनके लिए छाया है ना ही पत्तियों की ओट की सुरक्षा। न डालियों पे फुदकने की मौज। ज़रा सोंचिये, इन नन्ही जानों ने बिजली के ठन्डे तारों पर अपने पैर जमाना कैसे सीखा होगा?  

आपको नही लगता हमने उनके पैरों तले से जंगल का आशियाना खींचकर निकल दिया और उन छोटे-नन्हों ने 'चूं' तक नहीं की? वैसे वो पेड़ भी तो कहां कुछ कह पाए?

birds sitting on branch of a trees

अब देखिये इन दिनों बर्ड फ्लू फ़ैल रहा है। हम 'इंसानों' ने खुद को कोरोना से बचाने के कई कोशिशें कर ली। कर रहे हैं। इन पंछियों को कौन सैनीटाईज़ करेगा? इनका अकेले उड़ना, झुंड में नहीं, ये कैसे होगा? कितने ही पक्षियों को मरता देख लिया हमने अब तक। पर जो सतर्कता हम अपने लिए बरतते हैं क्या उसका कुछ मात्रा भी इन जीव जंतुओं के लिए है हमारे पास?

bird perched on tree branch


चलिए दुआ करते हैं की इन पंछियों की दुनिया आबाद रहे। इनका हमारे पास होना हमारे लिए ही बहुत ज़रूरी है। ये नन्हे-मासूम न सिर्फ दाना कहते हैं बिखेर कर नए पेड़ पौधे लगने में हमारी ही तो मदद करते हैं। फिर से अपने ही स्वार्थ के लिए हम इन्हे 'रहने' दें। और अगर कुछ ज़्यादा कर सके तो क्या बात है!



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